बात बहुत सालो पहले की है...
मै छोटा था ..और मेरी summer vacation आयी हुई थी...मै मेरी मौसी के रहने अलवर चले गया..वहा जाकर खूब मौज मस्ती की..थोडे दिन बीते...वहा मौसाजी के साथ उनके भाइ भी रहते थे और उनके भाइ का एक बेटा था मेरा जितना..
हम दोनो दोस्त बन चुके थे..मै उसके साथ यहा वहा घूमता रहता ...उसके पापा की दुकान मौसी के घर के आगे वाली गली के बाई तरफ़ था..हम दोनो उसकी दुकान जाते रहते...मै अकेला कही बाहर नही जाता..क्युकी मै अभी वहा के रास्तो को अच्छी तरह नही जानता था...बस इतना पता था की उनकी दुकान के चार पांच दुकान छोडकर एक गली है उस गली मे handpump है घुसते ही..और उसी गली मे मेरी मौसी का घर है..
एक बार मै और मौसाजी के भाइ का बेटा दोनो उनकी दुकान गये..उसकी साइकल से...थोडी देर बैठे रहे...मुझे भुख लगने लगी..मैने सोचा चलो घर चलते है...मैने उसकी साइकल ली और वहा से निकल गया...जैसा की मै सिर्फ इतना जानता था की उनकी दुकान के चार पांच दुकान छोडकर एक गली हैं और उस गली मे घुसतेही handpump है उसी गली मे उनका घर है...मै साइकल चलाते चलाते, गाना गाते गाते जाने लगा..हवाओ मे झुलते झुलते...तभी मैने देखा की चार पांच दुकान भी पीछे चली गयी...लेकिन handpump वाली गली आयी नही...मैने साइकल रोकी आजू बाजू देखा..और सोचा आगे है शायद..मै फ़िर अपनी ही धुन मे सवार होकर जाने लगा..गाना गाते गाते -"तु पैसा पैसा करती है तु पैसे पे क्यू मरती है"(उस समय ये गाना हिट था, छोटे छोटे बच्चे जिनको एबीसीडी आती नही वो भी गाते थे)
थोडी आगे गया फ़िर कोई handpump वाली गली नही दिखी..मैने फ़िर साइकल रोकी, आजू बाजू देखा...और सोचा शायद आगे है...मै फ़िर गाना गाते गाते जाने लगा...मै थोडी आगे गया...और साइकल धीरे करली..मैने देखा अब तक कोई handpump वाली गली नही आयी...मैने सोचा की मै शायद भटक गया..लेकिन तभी मुझे लगा की नही वो गली शायद आगे है...मै आगे जाने लगा..लेकिन बजरंग बली की कसम अब मुह से गाना नही निकल रहा था...मै धीरे धीरे आगे जाने लगा..मै आस पास देख रहा था..उस समय मेरे दिमाग मे एक ही चीज़ थी, की बस handpump वाली गली दिख जाये...लेकिन कमबख्त ना कोई गली दिख रही थी ना कोई handpump...मै डरने लगा..मै लगातार बजरंग बली का नाम ले रहा था..और मन ही मन प्राथना कर रहा था की भगवान मुझे घर पहुचादो मै दस बार हनुमान चलिसा पढून्गा..मै खूब पढून्गा खेलुन्गा भी नही..मम्मी की कसम मुझे घर पहुचादो....मै साइकल पर से उतर गया और धीरे धीरे आगे बढने लगा...मुझे कुछ समझ नही आ रहा था..मै तो पैसा पैसा वाला गाना भी भूल चुका था..मै आगे बढता जा रहा था...तभी एक कपडे की दुकान से एक आदमी ने आवाज़ लगाई- "आओ sir हमारे यहा तरह की design है, एक बार आओ तो सही"...मैने कहा मुझे नही लेना..उसने फ़िर अवाज़ लगाई sir आओ तो सही एक बार...देख कर तो देखो...मेरे कदम तेज़ी से चलने लगे....मै थोडी दूर गया...आगे बहुत सारे ठेले वाले खडे थे..कोई सब्जी बेच रहा था..कोई फल...मै जा रहा था...तभी एक ने मुझे देख कर चिल्लाया "दस की आधा किलो, दस की आधा किलो"..साहब यहा आओ साहब यहा..भरे बाज़ार मे मुझे डर लग रहा था..चारो तरफ़ अनजान चेहरे..ऐसा लग रहा था की जैसे कोई दूसरे ग्रह पर आ गया हो..
मैने उन्हे अन्सुना कर दिया..मै डरने लगा..मेरे पास फोन भी नही था...मै परेशान हो गया..तभी मेरे दिमाग मे एक idea आया...मै थोडा सा रोने का नाटक करने लगा..लेकिन कोई नही आया..मै थोडा जोर से रोने लगा..अब भी कोई नही आया..मै थोडा और जोर से रोने का नाटक किया..तभी एक आदमी मेरी तरफ़ आया...मेरी आंखो मे चमक आ गयी...वो मेरे पास आया और कहा क्यू रो रहा है बेटा...मैने कहा की मै रास्ता भुल गया हु..मुझे घर जाना है..मै मौसी के आया हु...उसने कहा की कहा है उनका घर...मैने कहा एक गली है जिसमे handpumpp आता है उसमे है मौसी का घर...उसने कहा handpump तो पता नही कितनी गलियो मे आता है...मैने मौसाजी के भाइ की दुकान का नाम बता दिया...वो जान गया..और कहा. की चलो मै भी उधर जा रहा हु तुम्हे भी घर पहुचादूँगा...
मैने उसकी शकल देखी...बिल्कुल गुंडो जैसी थी..लंबी लंबी दाढी..भुरे बाल...मुझे मेरे पापा की बात याद आ गयी..उन्होने कहा था की किसी अन्जान से लिफ़्ट मत लिया करो..जमाना खराब है..पकड़ के ले जायेन्गे और भीख मन्गवायेन्गे....मै और डर गया..लेकिन क्या करू मै रास्ता भटक गया था..मुझे घर तो जाना था..मै हिम्मत करके उसके साथ चलने लगा...धीरे धीरे हम चलने लगे...मै बार बार उसकी तरफ़ देख रहा था...और रोने का नाटक कर रहा था....आखिर उसने मुझे घर पहुचादिया...और मौसी वगरह सब मुझे पुचकारने लगे....तभी मौसाजी के भाइ का लड़का दोडते दोडते आया मेरी तरफ़...मैने सोचा इसे भी मेरी चिंता लग आयी होगी..लेकिन वो दोडा दोडा आया...और मेरे हाथ से साइकल लेकर साइकल को देखने लगा की कही साइकल को कुछ हुआ थोडी..!!
मै छोटा था ..और मेरी summer vacation आयी हुई थी...मै मेरी मौसी के रहने अलवर चले गया..वहा जाकर खूब मौज मस्ती की..थोडे दिन बीते...वहा मौसाजी के साथ उनके भाइ भी रहते थे और उनके भाइ का एक बेटा था मेरा जितना..
हम दोनो दोस्त बन चुके थे..मै उसके साथ यहा वहा घूमता रहता ...उसके पापा की दुकान मौसी के घर के आगे वाली गली के बाई तरफ़ था..हम दोनो उसकी दुकान जाते रहते...मै अकेला कही बाहर नही जाता..क्युकी मै अभी वहा के रास्तो को अच्छी तरह नही जानता था...बस इतना पता था की उनकी दुकान के चार पांच दुकान छोडकर एक गली है उस गली मे handpump है घुसते ही..और उसी गली मे मेरी मौसी का घर है..
एक बार मै और मौसाजी के भाइ का बेटा दोनो उनकी दुकान गये..उसकी साइकल से...थोडी देर बैठे रहे...मुझे भुख लगने लगी..मैने सोचा चलो घर चलते है...मैने उसकी साइकल ली और वहा से निकल गया...जैसा की मै सिर्फ इतना जानता था की उनकी दुकान के चार पांच दुकान छोडकर एक गली हैं और उस गली मे घुसतेही handpump है उसी गली मे उनका घर है...मै साइकल चलाते चलाते, गाना गाते गाते जाने लगा..हवाओ मे झुलते झुलते...तभी मैने देखा की चार पांच दुकान भी पीछे चली गयी...लेकिन handpump वाली गली आयी नही...मैने साइकल रोकी आजू बाजू देखा..और सोचा आगे है शायद..मै फ़िर अपनी ही धुन मे सवार होकर जाने लगा..गाना गाते गाते -"तु पैसा पैसा करती है तु पैसे पे क्यू मरती है"(उस समय ये गाना हिट था, छोटे छोटे बच्चे जिनको एबीसीडी आती नही वो भी गाते थे)
थोडी आगे गया फ़िर कोई handpump वाली गली नही दिखी..मैने फ़िर साइकल रोकी, आजू बाजू देखा...और सोचा शायद आगे है...मै फ़िर गाना गाते गाते जाने लगा...मै थोडी आगे गया...और साइकल धीरे करली..मैने देखा अब तक कोई handpump वाली गली नही आयी...मैने सोचा की मै शायद भटक गया..लेकिन तभी मुझे लगा की नही वो गली शायद आगे है...मै आगे जाने लगा..लेकिन बजरंग बली की कसम अब मुह से गाना नही निकल रहा था...मै धीरे धीरे आगे जाने लगा..मै आस पास देख रहा था..उस समय मेरे दिमाग मे एक ही चीज़ थी, की बस handpump वाली गली दिख जाये...लेकिन कमबख्त ना कोई गली दिख रही थी ना कोई handpump...मै डरने लगा..मै लगातार बजरंग बली का नाम ले रहा था..और मन ही मन प्राथना कर रहा था की भगवान मुझे घर पहुचादो मै दस बार हनुमान चलिसा पढून्गा..मै खूब पढून्गा खेलुन्गा भी नही..मम्मी की कसम मुझे घर पहुचादो....मै साइकल पर से उतर गया और धीरे धीरे आगे बढने लगा...मुझे कुछ समझ नही आ रहा था..मै तो पैसा पैसा वाला गाना भी भूल चुका था..मै आगे बढता जा रहा था...तभी एक कपडे की दुकान से एक आदमी ने आवाज़ लगाई- "आओ sir हमारे यहा तरह की design है, एक बार आओ तो सही"...मैने कहा मुझे नही लेना..उसने फ़िर अवाज़ लगाई sir आओ तो सही एक बार...देख कर तो देखो...मेरे कदम तेज़ी से चलने लगे....मै थोडी दूर गया...आगे बहुत सारे ठेले वाले खडे थे..कोई सब्जी बेच रहा था..कोई फल...मै जा रहा था...तभी एक ने मुझे देख कर चिल्लाया "दस की आधा किलो, दस की आधा किलो"..साहब यहा आओ साहब यहा..भरे बाज़ार मे मुझे डर लग रहा था..चारो तरफ़ अनजान चेहरे..ऐसा लग रहा था की जैसे कोई दूसरे ग्रह पर आ गया हो..
मैने उन्हे अन्सुना कर दिया..मै डरने लगा..मेरे पास फोन भी नही था...मै परेशान हो गया..तभी मेरे दिमाग मे एक idea आया...मै थोडा सा रोने का नाटक करने लगा..लेकिन कोई नही आया..मै थोडा जोर से रोने लगा..अब भी कोई नही आया..मै थोडा और जोर से रोने का नाटक किया..तभी एक आदमी मेरी तरफ़ आया...मेरी आंखो मे चमक आ गयी...वो मेरे पास आया और कहा क्यू रो रहा है बेटा...मैने कहा की मै रास्ता भुल गया हु..मुझे घर जाना है..मै मौसी के आया हु...उसने कहा की कहा है उनका घर...मैने कहा एक गली है जिसमे handpumpp आता है उसमे है मौसी का घर...उसने कहा handpump तो पता नही कितनी गलियो मे आता है...मैने मौसाजी के भाइ की दुकान का नाम बता दिया...वो जान गया..और कहा. की चलो मै भी उधर जा रहा हु तुम्हे भी घर पहुचादूँगा...
मैने उसकी शकल देखी...बिल्कुल गुंडो जैसी थी..लंबी लंबी दाढी..भुरे बाल...मुझे मेरे पापा की बात याद आ गयी..उन्होने कहा था की किसी अन्जान से लिफ़्ट मत लिया करो..जमाना खराब है..पकड़ के ले जायेन्गे और भीख मन्गवायेन्गे....मै और डर गया..लेकिन क्या करू मै रास्ता भटक गया था..मुझे घर तो जाना था..मै हिम्मत करके उसके साथ चलने लगा...धीरे धीरे हम चलने लगे...मै बार बार उसकी तरफ़ देख रहा था...और रोने का नाटक कर रहा था....आखिर उसने मुझे घर पहुचादिया...और मौसी वगरह सब मुझे पुचकारने लगे....तभी मौसाजी के भाइ का लड़का दोडते दोडते आया मेरी तरफ़...मैने सोचा इसे भी मेरी चिंता लग आयी होगी..लेकिन वो दोडा दोडा आया...और मेरे हाथ से साइकल लेकर साइकल को देखने लगा की कही साइकल को कुछ हुआ थोडी..!!
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